योग क्या है ? भाग-1
Updated: Feb 7
शब्द योग, शायद आदतन भारतीय समाज में सबसे ज्यादा बोले जाने वाला शब्द होगा। परंतु हममें से अधिकतर लोगों को योग का अर्थ नहीं मालूम सामान्यतः योग को हम जिस रूप में इस्तेमाल करते है वह मूलत व्यायाम है। वह योग नहीं है। केवल श्वास-प्रश्वास करना, केवल कुछ आसन करना या कुछ विशिष्ट सूक्ष्म व्यायाम कर लेना यह योग नहीं है. यह तो योग का एक खंड मात्र है। दुख तो इस बात का और भी अधिक है कि लोग शब्द योग को ‘योगा’ बनाते चले जा रहे हैं। वर्तमान समय में लोगों के लिए यह एक फैशन और स्टेटस सिंबल बन गया। जिसे देखो वही योगा-योगा करके आसन करने बैठ जाता है। जिस तरह से इस पवित्र और गंभीर विषय का समाज में प्रयोग हो रहा है, वह प्रयोग कम और स्टेटस सिंबल ज्यादा प्रतीत होता है। यह वास्तव में हमारे लिए काफी दुख और परेशानी की बात है, इस शब्द के सही रूप को जानने का प्रयास करते हैं।

मोटे शब्दों में योग का अर्थ है स्थूलता से सूक्ष्मता की और जाना अर्थात् बहिर्मुखी से अंतर्मुखी होना। योग का अर्थ यह भी है कि हम अपनी इंद्रियों को अपने अहंकार, लोभ और कुवृत्तियों को रोक सकें, उनका निरोध कर सके। इसमें तम की मात्रा कम होती जाए और सत्य का प्रकाश बढ़ता चला जाए योग का उद्देश्य केवल शारीरिक स्वास्थ्य नहीं है बल्कि शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य का मतलब योग योग न तो वैराग्य है, योग न तो व्यायाम है, और न ही मात्र जप अथवा ध्यान है बल्कि योग इन तीनों का सम्मिलित स्वरूप है क्योंकि योग का उद्देश्य केवल शरीर का उत्थान नहीं है बल्कि योग का उद्देश्य ‘आत्मा का उत्थान है’ आत्मा का परमात्मा से - मिलन है आत्मा की परमावस्था ही योग का साध्य है और व्यायाम, वैराग्य, अभ्यास, ध्यान, जप इत्यादि इसके साधन है। योग का शाब्दिक अर्थ है मिलना। इसे भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में ईश्वर और जीव का मिलन एवं आत्मा और परमात्मा का मिलन के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिसके लिए समस्त चित्तवृत्तियों को एकाग्र करना होता है। श्रीकृष्ण के अनुसार 'योग कर्मसु कौशलम्' अर्थात् कर्म की कुशलता ही योग है।
योग- शास्त्र की तात्विक विवेचना सर्वप्रथम ऋषि पतंजलि ने की थी उसके उपरांत ऋषि व्यास ने योगसूत्र पर भाष्य लिखा तदोपरांत योग सूत्र पर सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ व्यास्य, भाष्य लिखा गया जिसकी रचना आचार्य व्यास देव ने की आगे जाकर आचार्य वाचस्पति, विज्ञान भिक्षु राघवानंद तथा सदाशिव