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परिवर्तित हो परिवर्तन करो भाग - 1

Updated: Aug 5, 2023

मैं हमेशा ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि जीवन में सब कुछ सबके लिए बहुत अच्छा हो व्यक्तिगत रूप से और राष्ट्रीय रूप से भी। मेरा अध्यात्म मुझे पहले राष्ट्र के बारे में सोचने को कहता है, फिर समाज के बारे में और फिर स्वयं के बारे में। विकास व्यक्ति से प्रारंभ होता है और राष्ट्र व्यक्ति से मज़बूत होता है।


करीब तीस वर्षों से मैं देश में घूम रहा हूँ और मेरे भ्रमण का निचोड़ यह निकला कि देश आई.सी.यू. में भर्ती हो चुका है और विकास की सारी जिम्मेदारी हमने सरकार पर छोड़ दी है। कभी नहीं सोचा कि मैं भी सरकार हूँ। इसलिए जैसा मैं हूँ वैसा ही मेरा नेता है।


हम कहते हैं कि हम लोग आम आदमी हैं, हम लोग क्या कर सकते हैं। मैं आज तक आम आदमी को परिभाषा नहीं समझ पाया। असल में अपने आप को आम आदमी कहकर हम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं, यहाँ तक कि प्रश्न करने से भी बचना चाहते हैं। जब बच्चे थे तो पिता से प्रश्न नहीं किया, स्कूल में थे तो शिक्षक से प्रश्न नहीं किया, सामाजिक जीवन में आए तो राजनीतिज्ञों से प्रश्न नहीं किया और जिस कॉम में प्रश्न नहीं उठता, उस कीम के शक्तिशाली लोग निरंकुश हो जाते हैं और उसी निरंकुशता का दंश अब हम भोग रहे हैं।


Economy के नाम पर हम सबको industries पढ़ाते हैं, farming क्यों नहीं पढ़ाते? जो profession इस देश की नींव है उसे हम downgrade profession मान रहे हैं। इसी profession के दम पर अमेरिका तरक्की कर रहा है। हमने उस संस्कृति से बुरी चीज़े तो सीख ली पर उसकी अच्छाई सीखने में हमें गुरेज़ क्यों होता है? हमने कभी कृषि को महत्व नहीं दिया, इसीलिए हमें fertilized food खाना पड़ा। कीटनाशक छिड़के फल और सब्जियां खानी पड़ीं। hybridization को विदेशियों ने बहुत अच्छी चीज़ कहा और हमने अपना लिया। अमेरिका में क्या hybrid food खाया जाता है इस बात पर हमने कभी जानकारी लेने का प्रयास नहीं किया। Cold drink उनके कहने से पीना शुरू कर दिया। यह जानने का प्रयास नहीं किया कि क्या यही cold drink वहां पिया जाता है। यह महज़ खान-पान की बात नहीं, यह वैचारिक स्वतंत्रता की बात है। अध्यात्म हमेशा आत्मा को बलवान बनाता है। आध्यात्मिक व्यक्ति के पास वैचारिक स्वतंत्रता, वैचारिक स्वराज होता है। वैचारिक रूप से वह सत्याग्रह करता है लेकिन हमने ऐसा सत्याग्रह कभी नहीं किया क्योंकि हम अध्यात्म नहीं समझते। इसलिए हम अज्ञानता की श्रेणी में आकर खड़े हो गए। Physics, Chemistry, Mathematics को पढ़ते-पढ़ते साहित्य को भूल गये, करुणा को भूल गये। अपने आपको हमने concrete के जंगल में बंद करके विकास पुरुष समझना शुरू कर दिया लिहाज़ा हमारे साथ जो होना चाहिए था, वही हो रहा है। हमने अपनी परंपराओं को कमजोर कहना शुरू कर दिया। यदि किसी चीज के बारे में नहीं मालूम तो जिज्ञासु बनें न कि आलोचक लेकिन हम लोगों ने अपनी परंपराओं से बचना शुरू कर दिया। नतीजा क्या निकला समाज नैतिक और चारित्रिक रूप से disfunctional हो गया। इसलिए विषाद नहीं, पश्चाताप करिये। क्षमा मांगिये खुद से, राष्ट्र से।


कानून कदाचार रोक सकता है, सदाचार नहीं सिखा सकता। शांति सदाचार से आती है, कदाचार के रुकने से नहीं आती। बच्चियों व महिलाओं के साथ दुष्कर्म होने पर जिस वक्त देश में यह सवाल उछल रहा होता है कि rapist के लिए फांसी हो, ठीक उसी वक्त, बिजनौर में बारह साल की बच्ची का रेप हो रहा होता है। मतलब यह है कि कानून के power से आप कुछ देर के लिए public को डिटर कर सकते हैं, डरा सकते हैं, रोक नहीं सकते। अगर समाज का कदाचार रोकना है तो उसके हल निकालने होंगे और उसका हल है- शिक्षा और अध्यात्म लेकिन हमने शिक्षा का अर्थ गलत समझा। आजकल की शिक्षा को तो मैं education मानता ही नहीं हूँ। कहा जाता है कि शिक्षा से चरित्र निर्माण होता है लेकिन इस देश में पिछले 67 सालों में शिक्षा का स्तर ज्यों-ज्यों बढ़ता गया, उतना ही कदाचार बढ़ता गया, जो जितना शिक्षित हुआ उसने उतना ही बड़ा भ्रष्टाचार किया। आप red light jumpers को देखिये, दीवारों पर थूकने वाले लोगों को देखें, लड़कियों को छेड़ने वाले लोगों को देखें, इनमें ज्यादातर तथाकथित educated है। इसका मतलब इस education से कुछ नहीं हुआ। आज कुछ राज्यों में 100 प्रतिशत साक्षरता है लेकिन उसका प्रभाव नहीं है। ऐसे ही दिन-ब-दिन मंदिर बढ़ते जा रहे हैं पर भक्त कम होते जा रहे हैं। यदि quantity सब कुछ होती तो यह देश आज दुनिया पर राज कर रहा होता। World Health Organisation के आंकड़े हैं कि memory कम हो रही है, एकाग्रता कम हो रही है।


गुस्सा बढ़ रहा है, चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है. हम जहां खड़े होते हैं वहीं दूसरे की निंदा करते हैं, षड्यंत्र करते हैं और विकारयुक्त मन कभी विकारमुक्त राष्ट्र की स्थापना नहीं कर सकता। जब तक व्यक्ति का मन शांत नहीं होगा, वह शांत राष्ट्र की स्थापना नहीं कर सकता। संसद राष्ट्र की स्थापना नहीं करती, सांसद करते हैं। सांसद कौन हैं? मैं और आप या हम में से कुछ लोग। देश, आज जितना भी चल रहा है कुछ गिने-चुने अच्छे लोगों के कारण चल रहा है। वे अच्छे लोग राजनीति में भी हैं, bureaucracy में भी, शिक्षण में भी, spirituality में भी हैं लेकिन बहुत कम हैं। Education को समझने की जरूरत है। We don't have to teach a student, we have to make him capable of learning. मैंने इस कान से सुना और चल दिया, थोड़ी देर बाद भूल जाऊँगा। ठीक उसी तरीके से जैसे मोटर ड्राइविंग की ट्रेनिंग में बताया जाता है। Red light जंप नहीं करना, मैं सुनता हूँ, चलता हूँ और अपने आप को अच्छा motorist तब मानता हूँ जब मैं Red light जंप करता हूँ।


हर cigarette के डब्बे पर लिखा होता है कि cigarette पीने से जान जा सकती है, कैंसर हो सकता है, लेकिन cigarette पीने वाले लोग बड़े हैं। शराब के impact सब जानते हैं पर शराब पीने वाले लोग बढ़े हैं। इसलिए Education के मतलब को समझना होगा। Education से चरित्र निर्माण होता है। चरित्र पर कहीं कोई काम नहीं होता। इंसान को अच्छा इंसान कौन बनाता है- उसका चित्त। चित्त से मन, मन से बुद्धि govern होती है। इस देश में चित पर कोई काम नहीं होता जबकि यह अध्यात्म का देश है। जिस देश में हर धर्म के लोगों ने आत्मविकारों से मुक्त होने पर बल दिया है वहां की Education में कहीं भी विकार से मुक्ति की कोई चर्चा नहीं है। आप चर्चा करना चाहेंगे तो secularism का प्रश्न उठा दिया जाएगा। हर चीज का राजनीतिकरण हो चुका है। अध्यात्म को हम पूजा-पाठ समझते हैं। अध्यात्म में पूजा तो कहीं हैं ही नहीं। अध्यात्म को समझते हैं particular dress code। अध्यात्म dresscode का मोहताज है ही नहीं। अपनी परंपराओं के हिसाब से लोग अपनी वेशभूषा कुछ भी चुन सकते हैं पर हमने अध्यात्म का कार्य एक समूह को दे दिया कि यह तुम करो। मुझे ईश्वर से आशीर्वाद चाहिए, सहयोग चाहिए, मैं नहीं करूंगा। तुम मेरे लिये कर दो, पैसे रख लेना। हमने यह अध्यात्म बना लिया। मत करिये पूजा, आप अध्यात्मिक हो सकते हैं। मत कीजिये पाठ, मत करिये मंत्रोच्चारण फिर भी आप अध्यात्मिक हो सकते हैं।


अध्यात्म क्या है? नैतिकता के क्रियान्वयन को अध्यात्म कहते है। जिस धर्म के शास्त्र जो सिखाते-पढ़ाते हैं जब वह क्रिया जिंदगी में उतरने लगती है तो वह अध्यात्म कहलाता है अन्यथा वे रिचुअल्स हैं। संस्कृत देववाणी है, संस्कृत बोलने वाला देवता हो, यह जरूरी नहीं है, जो संस्कृत न बोलता हो या बोलता हो पर मन का निर्मत है, वह देवता है। जब तक हम अध्यात्म को नहीं समझेंगे, कुछ नहीं होगा। parenting भी spirituality है। हर चीज का आधार मन है। बच्चों के मन पर अभिभावक और शिक्षक काम करें, तभी सदाचार सिखा पायेंगे। हमने अपनी जिंदगी को अलग-अलग दायरों में रखा। इसलिए सेवा को अलग, धर्म को अलग, कर्म को अलग मान लिया। जबकि यह तीनों एक हैं। जो कर्म बिना धर्म के होता है वह विकृत होता है और जिस कर्म में सेवा भाव नहीं होती, वह कुकर्म होता है। यदि इन तथ्यों को हम समझ लेते तो समाज में कुकर्म नहीं होते। अभी तो और अनाचार बढ़ेगा... बचेंगे कैसे? सूत्र वही है। परिवर्तित हुए बिना परिवर्तन नहीं कर सकते। आप class में student से कहें cigarette मत पियो और स्वयं बाहर आकर cigarette पिए तो कुछ नहीं होने वाला। पापा-मम्मी लालच करें, बच्चा न करे ऐसा नहीं हो सकता। बच्चे का learning process आज्ञा चक्र से चलता है। आज्ञा चक्र को साधा जाता है अध्यात्म से। इसलिये बच्चों को भी आध्यात्मिक बनाना शुरू कीजिये, बिना डरे बिना कोई हीन भावना महसूस करे।



भारत ने दुनिया को अकूत दिया. आज उसे ही मानने में हमें शर्मिंदगी महसूस होती न है। अजीब है हम लोग हमारे अंदर community confidence नहीं है इसलिए हम हमेशा दिग्भ्रमित रहते हैं, हमारे लक्ष्य स्पष्ट नहीं होते। हम कहते कुछ हैं, सुनते कुछ हैं और करते कुछ हैं। हमें अपने जीवन में कुछ नियम बनाने चाहिए, हमेशा की तरह उन्हें कागज पर ही लिखा न छोड़ें, उनका पालन भी करें। योग तब पूर्ण होता है जब योग क्रियात्मक होता है। Spirituality पूजा घर में बैठ कर कुछ करने की चीज़ नहीं है। इसका अर्थ है functionality इसलिए हम जो सोचें या हम जिस चीज से व्यथित हैं, जिस राष्ट्र का भला हम सब चाहते हैं, उसके लिए हमें कुछ करना होगा तब हम spiritual होंगे। 'भगत सिंह जन्म लेने चाहिए पर मेरे पड़ोसी के घर। मेरे घर कौन पैदा हो ?... राजकुमार सा लड़का या राजकुमारी सी लड़की जिसे दुनिया के सारे वैभव प्राप्त हो', बस यही सोच ले डूबती है। इस पर चिंतन करिये और फिर कर्म में उतारिय। राष्ट्र के विषय में सोचना पड़ेगा अन्यथा जो हो रहा है वह नहीं रुकेगा, बढ़ेगा और बहुत विकराल रूप ले लेगा। इसलिये स्वयं से यात्रा प्रारंभ करें और उसमें कदम इतनी मजबूती से रखें कि वह यात्रा राष्ट्र तक जाये। ईश्वर आपको खूब सुखी व संपन्न रखे।

।। राम-राम ।।


मानव रचना विश्वविद्यालय, फरीदाबाद में दिए गए प्रो. पवन सिन्हा 'गुरुजी' के भाषण से उद्धृत


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